Hindi Christian Documentary "वह जिसका हर चीज़ पर प्रभुत्व है" क्लिप - परमेश्वर द्वारा सदोम और अमोरा का विनाश
दुष्टता और व्यभिचार में आकंठ डूबे दो बड़े शहर, सोदोम और गोमोरा ने परमेश्वर के स्वभाव को ललकारा। परमेश्वर ने आकाश से गंधकाश्म और अग्नि की बारिश कर, दोनों शहरों और वहाँ के निवासियों को नष्ट कर दिया जिससे उनका अस्तित्व पूर्णत: समाप्त हो गया... ईसाई फिल्म क्लिप 'परमेश्वर द्वारा सोदोम और गोमोरा का विनाश' देखकर आपको परमेश्वर के रोषपूर्ण और अलंघनीय स्वभाव का और आने वाली पीढ़ियों के लिये चेतावनी का ज्ञान होगा। 

अनुशंसित:Hindi Christian Documentary | वह जिसका हर चीज़ पर प्रभुत्व है | Testimony of the Great Power of God
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चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

विशेष वक्तव्य: यह वीडियो प्रस्तुति सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया द्वारा लाभ-के-लिए-नहीं (नॉट-फॉर प्रॉफिट) रचना के रूप में तैयार की गई थी। इस प्रस्तुति में दिखाई देने वाले अभिनेता लाभ-के-लिए-नहीं आधार पर अभिनय कर रहे हैं, और उन्हें किसी भी तरह से भुगतान नहीं किया गया है। यह वीडियो किसी भी तीसरे पक्ष को लाभ के लिए वितरित नहीं किया जा सकता है, और हमें आशा है कि हर कोई इसे खुले तौर पर  साझा और वितरित करेगा। जब आप इसे वितरित करते हैं, तो कृपया स्रोत पर ध्यान दें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया की सहमति के बिना, कोई भी संगठन, सामाजिक समूह या व्यक्ति इस वीडियो की सामग्री के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता है या इसे गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं कर सकता है।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया:  https://hi.godfootsteps.org/  
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基督教會電影《摘下面具》誠實人才能蒙神稱許

趙慧敏從小受學校的教育與社會的薰陶,把「和為貴,忍為高」「看透不說透,還是好朋友」「明哲保身,但求無過」「多一事,不如少一事」等處世哲學當成行事為人的準則,因此她從不得罪人,凡事都維護與人的關係,她認為這樣活著才能在世上亨通。接受神的末世作工後,她仍憑著這些處世哲學與弟兄姊妹相處:當看到教會帶領狂妄自是,好站地位轄制人,不按真理原則盡本分時,她怕得罪人傷了和氣,就沒有指出帶領的問題;當上層帶領向她了解一姊妹的情況,她為保全自己、不承擔責任,有意說謊耍詭詐,隱瞞事實,打岔教會選舉工作。經歷了一次次神話語的審判刑罰、修理對付,她認識到自己一直以來所奉行的處世哲學正是撒但迷惑人、敗壞人的邪說謬論,這些撒但的毒素已深深扎根在她心裡,成了她的本性,憑這些撒但的哲學、法則活著,如同帶著面具做人,使她越來越圓滑、詭詐,不能實行真理順服神,她看透了老好人的實質就是詭詐人,如果始終不悔改,絕對不能蒙拯救……此時,趙慧敏有了覺醒,不願再做老好人、詭詐人,她立志追求真理,摘下面具做誠實人,蒙神稱許。

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एक युवा जिसे पछतावा नहीं है

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लेखिका: शाओवेन, चोंगकिंग शहर

प्रेम एक शुद्ध भावना है, शुद्ध बिना किसी भी दोष के। अपने हृदय का प्रयोग करो, प्रेम के लिए, अनुभूति के लिए और परवाह करने के लिए। प्रेम नियत नहीं करता, शर्तें, बाधाएँ या दूरी। प्रेम में नहीं है संदेह, चालाकी या धोखा। प्रेम में दूरी नहीं है और अशुद्ध कुछ भी नहीं” (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में “शुद्ध प्रेम बिना दोष के”)। परमेश्‍वर के वचनों का यह भजन उस दौरान मेरा साथी था जब मैंने जेल में अंतहीन लगने वाले दर्दनाक सात साल और चार महीने का समय गुज़ारा। हालाँकि चीनी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी (सीसीपी) की सरकार ने मुझे अपनी युवावस्था के सबसे अच्‍छे वर्षों से वंचित कर दिया, लेकिन मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर से वह सत्य प्राप्त किया जो सबसे मूल्‍यवान और सबसे वास्तविक है। इसलिए मुझे किसी तरह का पछतावा नहीं है! https://reurl.cc/D1R7vE

 

1996 में, मैंने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के उद्धार को स्वीकार कर लिया। परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ने, सभाओं में भाग लेने और सहभागिता के माध्यम से, मुझे यह दृढ़ विश्वास हो गया कि परमेश्‍वर जो भी कहता है वह सत्य है, और जीवन की सर्वोच्च सूक्ति है, और यह पूरी तरह से इस दुष्टतापूर्ण दुनिया के किसी भी सिद्धांत या ज्ञान के विरुद्ध है। जिस बात से मुझे और भी खुशी हुई वह यह थी कि मैं कलीसिया में अपने भाई-बहनों के साथ आसानी से खुल सकती थी, मैं अपने मन की बात खुलकर कह सकती थी और मुझे सशंकित रहने या छल करने की ज़रूरत नहीं थी जैसा कि बाहरी दुनिया के लोगों के संपर्क में आने पर मैं करती थी। मुझे ऐसी खुशी और उल्‍लास महसूस होता था जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था, मुझे इस बड़े परिवार से प्यार हो गया था। लेकिन जल्‍दी ही मैंने सुना कि परमेश्‍वर में विश्वास रखने वालों को चीन में सताया जाता है और ईसाइयों की अक्‍सर गिरफ्तारी और सताया जाना एक सामान्य घटना है। मैं इस बात से बहुत हैरान थी क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन बस यही तो हैं कि लोग परमेश्‍वर की आराधना करें, जीवन में सही राह पर चलें, और लोग ईमानदारी के साथ आचरण करें। अगर हर कोई सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर पर विश्वास रखे, तो दुनिया में कितनी शांति हो जाए। मैं वाकई समझ नहीं पाई: परमेश्‍वर में विश्वास करना सबसे धार्मिक कार्य है। सीसीपी सरकार परमेश्‍वर में विश्‍वास करने वाले लोगों को सताना और उनका विरोध क्यों करना चाहती है, यहाँ तक कि उन्हें गिरफ्तार भी करती है? अपने दिल में मैंने सोचा: सीसीपी सरकार मुझे चाहे जैसे सताए या जनमत चाहे जितना भी खिलाफ़ क्‍यों न हो, चूंकि मैं अब दृढ़ता से इसे जीवन की सही राह मानती हूँ, तो मैं पूरी तरह से इसी पर चलूँगी!

उसके बाद, मैंने कलीसिया में एक कर्तव्य निभाना शुरू किया जिसमें परमेश्‍वर के वचनों की पुस्तकें पहुँचाना शामिल था। मैं जानती थी कि परमेश्‍वर की इस कदर अवहेलना करने वाले देश में यह काम करना बेहद खतरनाक था और इसमें किसी भी पल गिरफ्तार किए जाने की आशंका थी, लेकिन मैं और भी अधिक दृढ़ता से जानती थी कि परमेश्‍वर के लिए खुद को न्‍योछावर कर देने और एक रचित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करना ही मेरा ध्‍येय था, और यह मेरी पक्‍की ज़िम्मेदारी थी। जब मुझे अपना कर्तव्य निभाने का पूरा भरोसा हो गया था, तभी सितंबर 2003 में एक दिन ऐसा आया जब मुझे शहर के राष्ट्रीय सुरक्षा ब्यूरो ने उस समय पकड़ लिया जब मैं अपने भाई-बहनों को परमेश्‍वर के वचनों की कुछ किताबें देने के लिए जा रही थी।

राष्ट्रीय सुरक्षा ब्यूरो में, मैं डरी हुई थी, और मैं नहीं जानती थी कि सीसीपी पुलिस की बार-बार पूछताछ का सामना कैसे करूँ, इसलिए मैंने अपने दिल में परमेश्‍वर से अधीर होकर आह्वान किया: “हे, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर। मैं विनती करती हूँ कि तू मुझे ज्ञान दे, मुझे वे शब्‍द सौंप जो मुझे कहने चाहिए, और मुझे तेरे साथ विश्‍वासघात करने से बचा। मैं विनती करती हूँ कि तू मुझे विश्वास और शक्ति प्रदान कर, सीसीपी मुझे चाहे जैसे सताए, मैं दृढ़ रहूँगी और तेरी गवाही दूँगी।” उस दौरान, मैं हर दिन परमेश्‍वर को आवाज़ देती थी और एक सेकंड के लिए भी मैंने अपने हृदय में परमेश्‍वर को छोड़ने की हिम्मत नहीं की। मैंने मेरी देखभाल करने और मेरी रक्षा करने के लिए मैंने परमेश्‍वर की सराहना की; जब भी वे मुझसे पूछताछ करते, तो मुझे लगातार हिचकियाँ आती थीं और मैं बिल्कुल भी बोल नहीं पाती थी। परमेश्‍वर के चमत्कारिक कामों को देखकर, मैं ज़बर्दस्‍त रूप से एकाग्र हो गई: मैं यह सब जोखिम उठाने के लिए तैयार हूँ! वे मेरा सिर काट सकते हैं, मेरी जान ले सकते हैं, लेकिन आज उनके लिए यह बिल्‍कुल असंभव है कि मुझसे परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात करवाएँ! जब मेरा संकल्प पक्‍का हो गया और मैंने अनुभव किया कि मैं यहूदा बनकर परमेश्‍वर के साथ विश्वासघात करने के बजाय अपनी जान दे दूँगी, तो मेरे लिए आगे की राह खोलने के लिए मैंने परमेश्‍वर के प्रति आभारी महसूस किया। जब भी मुझसे पूछताछ की गई, परमेश्‍वर ने मेरी रक्षा की और मुझे उस अग्निपरीक्षा से सुरक्षित पार कराया। हालाँकि, मैंने उन्हें कुछ भी नहीं बताया, पर अंत में, सीसीपी सरकार ने मुझ पर “कानून के क्रियान्‍वयन को नष्ट करने के लिए एक शी जियाओ संगठन का उपयोग करने” का आरोप लगाकर मुझे नौ साल की सजा सुनाई। परमेश्‍वर के संरक्षण के कारण, जब मैंने अदालत का फैसला सुना तो मैं व्यथित नहीं हुई, और न ही मुझे अदालत में लोगों से डर लगा। इसके बजाय, मेरे मन में उनके लिए घृणा के सिवा कुछ नहीं था। वे अपने निर्णय सुनाते हुए ऊंचाई पर थे, और मैं नीचे धीमी आवाज़ में कह रही थी: “यह सीसीपी सरकार द्वारा परमेश्‍वर की अवज्ञा का प्रमाण है!” बाद में, सरकारी सुरक्षा अधिकारी विशेष रूप से मेरे रवैये की जांच करने के लिए आए, मैंने उनसे बड़ी शांति से कहा: “नौ साल क्या होते हैं? जब मुझे रिहा करने का समय आएगा, तो तब भी मैं सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के कलीसिया की सदस्य रहूँगी, और अगर आपको मुझ पर विश्वास नहीं है, तो आप बस इंतज़ार करें और देखें! लेकिन याद रखें, यह मामला आपके हाथ में है!” मेरे रवैये से उन्हें बहुत हैरानी हुई और उन्होंने मुझे शाबासी देते हुए कहा: “हमें आपसे हार माननी होगी! हम आपकी प्रशंसा करते हैं! आप जियांग झुयुन से भी ज़्यादा मज़बूत हैं! जब आप बाहर आएंगी, तो हम मिलेंगे और हम आपको डिनर कराएंगे।” उस समय, मुझे लगा कि परमेश्‍वर की महिमा का गौरवगान हुआ है, और मैं कृतज्ञ हो गई। उस साल जब मुझे सजा सुनाई गई, तब मैं सिर्फ 31 साल की थी।

चीनी जेलें पृथ्वी पर नरक हैं। अंतहीन जेल जीवन ने मुझे बहुत स्पष्ट रूप से शैतान के क्रूर और अमानवीय चेहरे को और साथ ही इसके उस राक्षसी सार को देखने का अवसर दिया जो परमेश्‍वर का विरोध करता है। चीन की पुलिस कानून के राज पर अमल नहीं करती; वो बुराई के नियम पर अमल करती है। जेल में, गार्ड खुद लोगों जीना दूभर नहीं करते, बल्कि वे अन्य कैदियों को काबू में रखने के लिए कैदियों को हिंसा का प्रयोग करने के लिए उकसाते हैं। जेल के गार्ड लोगों की सोच को प्रतिबंधित करने के सभी तरीकों का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, जो कोई भी जेल में जाता है, उसे सीसीपी सरकार द्वारा जारी एक जैसी कैदी ही वर्दी पहननी होती है, और हर व्यक्ति को एक विशेष क्रमांक पहनना होता है; उन्हें सरकार की ज़रूरत के अनुसार ही अपने बाल कटवाने पड़ते हैं, वही जूते पहनने होते हैं जो सरकार उन्हें पहनने की अनुमति देती है, सरकार द्वारा निर्धारित मार्गों पर जाना और सरकार द्वारा निर्धारित गति से चलना पड़ता है। चाहे साल का कोई भी समय हो, हवा या बारिश में या कर्मी के दिनों में या ठंड के मौसम में, कैदियों को उनके आदेश के मुताबिक ही करना पड़ता है और वे स्वेच्छा से कुछ भी चुन नहीं सकते। हर दिन वे हमें कम से कम 15 बार गिनती करने के लिए और कम से कम पांच बार सीसीपी सरकार की प्रशस्ति गाने के लिए इकट्ठा करवाते थे; और फिर राजनीतिक कार्य भी थे, जैसे कि हमें जेल कानून और संविधान याद करवाया जाता था और हर छह महीने में एक बड़ी परीक्षा होती थी, जिसका उद्देश्य हमारा ब्रेनवॉश करना था। वे जब चाहते तब जेल के नियम और अनुशासन के बारे में हमारी परीक्षाएं लेते थे। जेल के गार्ड न केवल कैदियों को मानसिक यातना देते थे, बल्कि वे बड़ी अमानवीयता के साथ हमारे शरीर को भी तबाह करते थे: हमें हर दिन 10 घंटे से अधिक कठिन परिश्रम करना पड़ता था, और इससे भी बढ़कर वे कई सौ कैदियों को एक छोटी, संकरी फैक्‍ट्री की इमारत में भर देते थे। चूँकि वहाँ बहुत सारे लोग और बहुत थोड़ी जगह होती थी, और हर जगह मशीनों का तेज़ शोर होता था, जेल जाते समय कोई चाहे जितना भी स्वस्थ क्यों न हो, वहाँ कुछ समय बिता लेने के बाद उनके शरीर को गंभीर नुकसान होता था। मेरे पीछे एक बड़ी मशीन थी जिसका इस्तेमाल जूतों में छेद करने के लिए किया जाता था। यह रोज़ लगातार छेद करती रहती थी, जिससे असहनीय शोर होता था। कुछ वर्षों बाद, मेरी सुनने की क्षमता गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई, और यह अब भी ठीक नहीं हुई है। फैक्ट्री की इमारत में धूल और प्रदूषकों की मात्रा अधिक होने के कारण लोगों को और भी अधिक नुकसान पहुँचता था, बहुत से लोग तपेदिक और फैरिंजाइटिस से पीड़ित हो गये। इसके अलावा, चूंकि हमें बिना हिलेडुले लंबे समय तक बैठकर ऐसे ही काम करना पड़ता था, ज़्यादातर लोगों को गंभीर रक्तस्राव की शिकायत हो गई। सीसीपी सरकार कैदियों को पैसे बनाने की मशीन बना देती है, बिना ये परवाह किए कि वे जीते हैं या मर जाते हैं, लोगों से रोज़ सुबह से लेकर देर रात तक काम कराया जाता है। मैं हर समय बहुत थकी रहती थी और बहुत कमज़ोर महसूस करती थी। इतना ही नहीं, बल्कि हमें जेल में तमाम तरह की स्पॉट-चेक परीक्षाओं के उत्तर देने पड़ते थे, जो किसी भी समय हो सकती थीं, साथ ही साप्ताहिक राजनीतिक कार्य, शारीरिक श्रम और सार्वजनिक कार्य आदि तो थे ही। इसलिए, मेरा हर दिन बेहद मानसिक बेचैनी की हालत में बीतता था, और मेरे स्‍नायु इस डर से बुरी तरह खिंचे रहते थे कि कहीं मुझसे कोई चूक न हो जाए और मैं सारे काम न कर पाऊं, और फिर जेल गार्डों की सजा भुगतनी पड़े। उस तरह के वातावरण में, एक दिन भी सुरक्षित और अच्छी तरह से गुजरना वास्तव में आसान नहीं था। https://reurl.cc/D1R7vE

जब मेरी जेल की सजा की शुरुआत हुई ही थी, तो मैं जेल के भीतर इस तरह के क्रूर बर्ताव को बर्दाश्‍त नहीं कर सकती थी, और तमाम तरह के बेहद सघन श्रम के दबाव और वैचारिक दबाव से मुझे ऐसा लगता था कि मैं सांस नहीं ले सकती। इसके साथ ही तमाम तरह के अन्य कैदियों के संपर्क में आना और जेल गार्डों और हेड कैदियों के शारीरिक और मौखिक दुर्व्यवहार और अपमान को सहना। मुझे अक्सर हताशा का शिकार होना पड़ा और मैं कई बार निराशा में डूब गई। विशेष रूप से, जब भी मैं नौ साल की बेहद लंबी जेल अवधि के बारे में सोचती थी, तो मुझे इस तरह की वीरानी और बेबसी महसूस होती थी। मैं नहीं जानती कि मैं कितनी बार रोई, और मैंने ऐसी पीड़ा से मुक्ति‍ पाने के लिए मरने के बारे में भी सोचा। जब भी मैंने अपने आप को अत्यधिक दुःख में गिरते हुए महसूस किया और मुझे लगा कि मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकूंगी, तो मैं तुरंत प्रार्थना करती और परमेश्‍वर को पुकारती थी, परमेश्‍वर के वचन मुझे प्रबुद्धता देते और मेरा मार्गदर्शन करते थे: “फिर भी तुम मर नहीं सकते हो। तुम्हें अपनी मुट्ठियों को भींचना होगा और संकल्प के साथ जीते रहना होगा; तुम्हें परमेश्वर के लिए जीवन व्यतीत करना होगा। जब लोगों के भीतर सत्य होता है तब उनमें यह संकल्प और मरने की फिर कभी इच्छा नहीं होती है; जब मृत्यु तुम्हें डराएगी, तो तुम कहोगे, ‘हे परमेश्वर, मैं मरने के लिए तैयार नहीं हूँ; मैं अभी भी तुझे नहीं जानता हूँ। मैंने अभी भी तेरे प्रेम का प्रतिदान नहीं दिया है। मुझे केवल तुझे अच्छी तरह से जानने के बाद ही मरना होगा।’ …यदि तुम परमेश्वर की मंशा को नहीं समझते हो, और केवल अपनी पीड़ा पर ही चिंतन करते हो, तो तुम जितना अधिक इसके बारे में सोचते हो, तुम उतना ही अधिक व्यथित महसूस करते हो, और तब तुम मुसीबत में होगे और मृत्यु की पीड़ा को भुगतना शुरू करोगे। यदि तुम सत्य को समझते हो, तो तुम कहोगे, ‘मैंने अभी तक सत्य को प्राप्त नहीं किया है। मुझे स्वयं को परमेश्वर के लिए ठीक से व्यय अवश्य करना चाहिए। मुझे परमेश्वर की गवाही अवश्य देनी चाहिए। मुझे परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान अवश्य देना चाहिए। उसके बाद, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि मैं कैसे मरता हूँ। तब मैंने एक संतोषजनक जीवन जीया होगा। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि कौन मर रहा है, मैं अभी नहीं मरूँगा; मुझे दृढ़ता से जीना जारी रखना होगा’” (“मसीह की बातचीतों के अभिलेख” में “केवल सत्य की खोज करके ही तू अपने स्वभाव में परिवर्तन को प्राप्त कर सकता है”)। परमेश्‍वर के वचन माँ की तरह नर्म और कोमल प्रकाश की तरह चमकते थे, मेरे अकेले दिल को शांत करते थे, वे एक पिता के गर्म हाथों की तरह थे, जो मेरे चेहरे से आँसू पोंछते थे। तुरंत ही, गर्माहट और ताकत की एक सांस मेरे दिल में भर जाती थी। मैं समझ गई कि भले ही मेरी देह को इस अंधेरी जेल में कष्‍ट उठाने पड़ें, लेकिन परमेश्‍वर की यह इच्छा नहीं थी कि मैं मरने का प्रयास करूं; अगर मैं परमेश्‍वर की साक्षी नहीं बनसकी, तो मैं शैतान का मज़ाक बन जाऊंगी। अगर नौ साल बाद मैं इस राक्षसी जेल से बाहर निकल सकी, तो यह मेरी गवाही होगी। परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे जीने की हिम्मत दी और मैंने मन ही मन संकल्‍प कर लिया: चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, मैं जिऊंगी। मैं बहादुरी से जिऊंगी, दृढ़ता से जिऊंगी, और मैं पूरी तरह से परमेश्‍वर की साक्षी बनूंगी और उसे संतुष्ट करूंगी।

साल-दर-साल, महीने-दर-महीने काम के बोझ से दबे रहने के कारण, मेरा शरीर हर दिन कमजोर होता गया और लंबे समय तक कारखाने की इमारत में बैठने से मुझे असामान्य रूप से और बहुत अधिक पसीना आने लगा। जब मेरी बवासीर ज़्यादा बिगड़ जाती, तो किसी भी समय रक्तस्राव शुरू हो जाता था, और मुझे खून की गंभीर कमी के कारण अक्‍सर चक्कर आ जाते थे। लेकिन जेल में इलाज कराना आसान बात नहीं थी। जब जेल के गार्ड अच्छे मूड में होते, तो वे मुझे कुछ सस्ती दवाएं देते। लेकिन जब वे खराब मूड में होते तो कहते कि मैं बीमारी का बहाना बनाकर अपने काम से बचने की कोशिश कर रहा हूँ, इसलिए मैं बस इतना कर पाती थी कि बीमारी के दर्द को झेलूँ और अपने आँसू पी जाऊँ। मुझसे पूरे दिन क्षमता से ज़्यादा काम कराया जाता था, मैं थकी-हारी किसी तरह कोठरी तक आती, मेरा मन करता था कि मैं आराम करूँ। लेकिन मुझे रात को अच्‍छी नींद का भी अधिकार नहीं था। या तो जेल के गार्ड मुझे कुछ करने के लिए बीच रात में ही जगा देते, या वे मुझे जगाने के लिए जोर-ज़ोर से शोर मचाते थे। वे अक्सर मेरे साथ इस हद तक खेल खेलते थे कि मैं बुरी तरह उलझकर तंद्रा की हालत में आती थी और अकथनीय कष्‍ट में रहती थी। इसके अलावा, मुझे जेल गार्डों के अमानवीय व्यवहार को भी सहना पड़ता था। मैं जमीन पर या कॉरिडोर में शरणार्थी की तरह सोती थी, या यहाँ तक कि शौचालय के पास भी। मेरे धोए गए कपड़े हवा में सूख नहीं पाते थे, बल्कि अन्य कैदियों के साथ भीड़ में रहने के कारण आई शरीर की गर्मी से सूखते थे। सर्दियों में कपड़े धोना विशेष रूप से बहुत परेशान करने वाली बात थी, और कई लोगों को लंबे समय तक सीले कपड़े पहनने से गठिया हो गया। इस जेल में, कोई भी व्यक्ति कितना भी स्वस्थ क्यों न हो, उसे मंदबुद्धि, कमज़ोर या बीमारियों से ग्रसित होने में बहुत समय नहीं लगता था। हम लोग अक्सर बेमौसम का, पुराने मुरझाए हुए पत्ते खाते जो दुकानों पर नहीं बिक सकते थे, और अगर हम कुछ बेहतर खाना चाहते, तो हमें जेल में महंगा भोजन खरीदना पड़ता था। जेल में, हालांकि गार्ड हमसे कानून का अध्ययन करवाते थे, पर उस जगह पर कोई कानून नहीं था; जेल के गार्ड ही कानून थे। जिसे वे पसंद नहीं करते थे उस पर नज़र पड़ते ही वे उससे निपटने के लिए कोई भी पुराना कारण ढूंढ़ निकालते थे, यहां तक कि उन्हें बिना किसी कारण के शारीरिक दंड भी देते थे। इससे भी अधिक घृणा की बात यह थी कि उन्‍होंने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर में विश्‍वास करने वालों को राजनीतिक कैदियों के रूप में यह कहते हुए वर्गीकृत किया था कि हम हत्यारों या आगजनी करने वालों से भी बदतर अपराधी हैं। इसलिए वे विशेष रूप से मुझसे शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते थे, मुझसे सबसे कठोर व्यवहार करते थे और मुझे सबसे ज्यादा परेशान करते थे। ये तमाम तरह के बुरे कर्म इस बात का प्रमाण हैं कि सीसीपी विकृत, परमेश्‍वरविहीन है और परमेश्‍वर के विरोध में है! जेल गार्डों की क्रूर यातना को सहन करते हुए, मेरा दिल अक्सर धार्मिक आक्रोश से भर जाता था और बेहद दुःख और आक्रोश अनुभव करता था: वास्तव में परमेश्‍वर में हमारे विश्‍वास और परमेश्‍वर की आराधना से किस कानून का उल्लंघन हुआ है? हमने परमेश्वर का अनुसरण करके और जीवन में सही राह पर चलकर क्या अपराध किया है? लोगों को परमेश्‍वर ने बनाया है, परमेश्‍वर पर विश्वास करना और परमेश्‍वर की आराधना करना एक निर्विवाद सत्य है। सीसीपी सरकार के पास हमें बेशर्मी से रोकने और हमें क्रूरता से प्रताड़ित करने के लिए क्या कारण है? यह स्पष्ट है कि यह विकृत और परमेश्‍वरविहीन है, और हर बात में परमेश्‍वर का विरोध करती है। यह सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर में विश्‍वास करने वालों को प्रतिक्रियावादी करार देती है और उनका गंभीर दमन-उत्‍पीड़न करती है, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का अनुसरण करने वाले सभी को पकड़ने और खत्‍म कर देने की कोशिश करती है। क्या यह सही और गलत को गड्डमड्ड करना और पूरी तरह से प्रतिक्रियावादी बात नहीं है? वे इस कदर स्वर्ग का विरोध करते हैं और खुद को परमेश्‍वर के खिलाफ स्थापित करते हैं, कि अंत में उन्हें परमेश्‍वर का धार्मिक दंड मिलना ही चाहिए! क्योंकि जहाँ भी भ्रष्टाचार है, वहाँ न्‍याय होना चाहिए, और जहाँ कहीं भी बुराई है, वहाँ धर्मपालन होना चाहिए—ये परमेश्‍वर द्वारा पूर्वनिर्धारित स्वर्ग के नियम और सिद्धांत हैं, और कोई भी उनसे बच नहीं सकता है। सीसीपी सरकार सबसे जघन्य अपराधों की दोषी है, और परमेश्‍वर द्वारा नष्ट होने से वह बच नहीं सकती है। जैसा परमेश्‍वर ने कहा है: “परमेश्वर इस अंधियारे समाज से लंबे समय से घृणा करता आया है। इस दुष्ट, घिनौने बूढ़े सर्प पर अपने पैरों को रखने के लिए वह अपने दांतों को पीसता है, ताकि वह फिर से कभी न उठ पाए, और फिर कभी मनुष्य का दुरुपयोग न कर पाए; वह उसके अतीत के कर्मों को क्षमा नहीं करेगा, वह मनुष्य को दिए गए धोखे को बर्दाश्त नहीं करेगा, वह प्रत्येक युग में उसके सभी पापों के लिए उसका हिसाब करेगा; सभी बुराइयों के इस सरगना[1] के प्रति परमेश्वर थोड़ी भी उदारता नहीं दिखाएगा, वह पूरी तरह से इसे नष्ट कर देगा” (“वचन देह में प्रकट होता है” में “कार्य और प्रवेश (8)”)।

इस राक्षसी जेल में, मैं बुरी पुलिस की नजर में एक आवारा कुत्ते से बेहतर नहीं थी। न केवल उन्होंने मेरे साथ शारीरिक और मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया, बल्कि वे अक्सर मेरे बिस्तर की छानबीन करते और मेरे व्यक्तिगत सामान को चारों ओर बिखेर देते। इसके अलावा, जब भी बाहरी दुनिया में किसी तरह की सामाजिक अशांति होती, तो जेल में जो लोग राजनीतिक मामलों के प्रभारी थे, मेरे पास आते और जो कुछ हुआ था उस पर मेरे विचारों के बारे में पूछताछ करते, और अगर मेरे जवाब से वे खुश नहीं होते, तो वे परमेश्‍वर में विश्वास करने के लिए मुझे लगातार डांटते-फटकारते थे। जब भी मुझे इस तरह की पूछताछ का सामना करना पड़ता, तो मेरा कलेजा मुँह को आ जाता, क्‍योंकि मुझे पता नहीं होता था कि इस बार मेरे खिलाफ़ किस तरह की साज़िश रची जा रही थी। मेरा दिल हमेशा प्रार्थना करता और परमेश्‍वर को पुकारता रहता था कि मेरी मदद करे और इन कठिन समयों से निकलने में मुझे राह दिखाए। दिन-ब-दिन, साल-दर-साल, तमाम तरह के दुर्व्यवहार, शोषण और उत्पीड़न एक ऐसी यातना थे जिसे बयाँ नहीं किया जा सकता: हर दिन श्रम कार्यों के अत्‍यधिक बोझ, नीरस राजनीतिक कार्यों और बीमारी के कष्टों के साथ ही दीर्घकालिक मानसिक उत्पीड़न ने मुझे लगभग टूट जाने के कगार पर पहुंचा दिया। विशेष रूप से, एक समय ऐसा था जब मैंने देखा कि अधेड़ उम्र की एक महिला कैदी ने रात में अपनी कोठरी की खिड़की से लटककर आत्‍महत्‍या कर ली क्योंकि वह बुरी पुलिस की अमानवीय यातनाओं को अब और सहन नहीं कर सकती थी, और एक समय जब एक बुजुर्ग महिला कैदी की जेल में मौत हो गई क्योंकि उसका इलाज समय से नहीं किया गया था, और इन समयों में मैं एक बार फिर निराशा की स्थिति में आ जाती। एक बार फिर, मैं अपनी परेशानियों को समाप्त करने के लिए मृत्यु के बारे में सोचने लगती और मुझे लगता था कि मृत्यु मुक्त होने का सबसे अच्छा तरीका है। हालांकि, मुझे पता था कि यह परमेश्‍वर के साथ विश्वासघात होगा, और मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं बस इतना ही कर सकती थी कि इस सारे दर्द को झेलती और परमेश्‍वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करती। लेकिन जब मैंने अपनी अंतहीन सज़ा के बारे में सोचा, और यह सोचा कि स्वतंत्रता अभी अनिश्‍च‍ित भविष्‍य में कितनी दूर थी, तो मुझे अवर्णनीय दर्द और निराशा महसूस हुई, और मुझे लगा कि अब मैं यह सब और बर्दाश्त नहीं कर सकती; मुझे वास्तव में नहीं पता था कि मैं कब तक खुद को संभाले रह सकती हूं। कई बार, मैं बस बिस्तर में चादर ओढ़कर रात के सन्नाटे में चुपके-चुपके रोती, और सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर से प्रार्थना करती और उसे अपने दिल की सभी परेशानियों के बारे में बताती। जब मैं सबसे ज्यादा दर्द में होती और सबसे ज्यादा असहाय महसूस करती, तो मैं परमेश्‍वर के वचनों के बारे में सोचती: “तुम सबने, विशेष रूप से, उत्पीड़न सहा है और घर लौटने में कठिनाई का सामना किया है; तुम कष्‍ट उठाते हो, और तुममें मृत्यु के विचार और जीने की अनिच्छा भी है। ये देह की कमजोरियाँ हैं। …तुम नहीं जानते कि आज परमेश्‍वर क्या कर रहा है। परमेश्‍वर को तुम्‍हारी देह को कष्‍ट उठाने की अनुमत‍ि देनी पड़ती है ताकि तुम्‍हारे स्वभाव को बदल सके। भले ही तुम्‍हारी देह कष्‍ट उठाती है, पर तुम्‍हारे पास परमेश्‍वर का वचन है और तुम्‍हारे पास परमेश्‍वर का आशीर्वाद है। अगर तुम चाहो तो भी तुम मर नहीं सकते हो: क्या तुम यह स्‍वीकार कर सकते हो कि मर जाने पर तुम परमेश्‍वर को नहीं जानोगे और सत्‍य को नहीं पाओगे? अब, मुख्य रूप से, बस इतना है कि लोगों ने अब तक सत्‍य नहीं पाया है, और उनके पास जीवन नहीं है। अब लोग उद्धार पाने की प्रक्रिया के बीच में हैं, इसलिए उन्हें इस अवधि के दौरान कुछ कष्‍ट उठाना होगा। आज दुनिया भर में हर किसी की परीक्षा ली जाती है: परमेश्‍वर अब भी कष्‍ट उठा रहा है—क्या यह उचित है कि तुम कष्‍ट न उठाओ?” (“मसीह की बातचीतों के अभिलेख” में “केवल सत्य की खोज करके ही तू अपने स्वभाव में परिवर्तन को प्राप्त कर सकता है”)। परमेश्वर के वचनों से मेरे दुखी दिल को सुकून मिला, इससे मुझे कष्टों के मायने समझने में मदद मिली। परमेश्वर अब मनुष्य के स्वभाव को बदलने का काम कर रहा है; मैं अभी भी भ्रष्ट हूँ और मेरे भीतर शैतान के बहुत से ज़हर हैं, इसलिए मैं बिना कष्ट उठाए परिवर्तन और शुद्धि कैसे प्राप्त कर सकती हूँ? यह एक ऐसी पीड़ा है जिसे मुझे भुगतना चाहिये, जिसे मुझे भुगतना ही होगा। जब मैंने इन चीज़ों के बारे में सोचा, तो मुझे कोई पीड़ा नहीं हुई, बल्कि, मैंने महसूस किया कि परमेश्वर में अपनी आस्था की ख़ातिर इस उत्पीड़न को सहन करने और कैद किए जाने को बर्दाश्त करने की मेरी क्षमता, और यह कि मैं उद्धार के अनुसरण के लिए पीड़ा सह सकती हूँ, बेहद मूल्यवान और सार्थक है—यह पीड़ा जो मैं झेल रही थी वह कितनी योग्य है! अनजाने में ही, मेरे दिल के दु:ख के भाव, ख़ुशी के भाव में बदल गये, मेरा दिल खुशी से भजन गाने के लिए मचल उठा, जो इस प्रकार था “हम भाग्‍यशाली हैं कि हम परमेश्‍वर के आगमन के साक्षी हैं, हम उसकी वाणी सुनते हैं। हम भाग्‍यशाली हैं कि हम परमेश्‍वर के आगमन के साक्षी हैं, हम मेमने के भोज में शामिल होते हैं। हम देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर को जानते हैं, हम उसके अद्भुत कर्मों को देखते हैं। हम मानव जीवन के रहस्य को समझते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन सबसे मूल्यवान हैं। …इतना भाग्यशाली और कौन हो सकता है? इतना धन्य और कौन हो सकता है? परमेश्वर हमें सत्य और जीवन प्रदान करता है, हमें परमेश्वर के लिए जीना चाहिए। हमें परमेश्वर के लिए जीना चाहिए। हमें परमेश्वर के लिए जीना चाहिए। हम सत्य को प्राप्त करते हैं और परमेश्वर के प्रेम के प्रतिदान के लिए परमेश्वर की गवाही देते हैं” (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना)। मैंने दिल ही दिल में बार-बार इस भजन को गाया। मैं जितना अधिक गाती, मेरा दिल उतना ही अधिक प्रोत्साहित होता, मैं जितना अधिक गाती, मैं उतनी ही मज़बूत और अधिक आनंदित महसूस करती, मैंने परमेश्वर के आगे शपथ ली: “हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मुझे दिलासा और प्रोत्साहन देने, मुझमें आस्था और जीने का हौसला पैदा करने के लिए मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ। तूने मुझे सचमुच यह महसूस कराया कि तू ही मेरे जीवन का प्रभु है, मेरे जीवन की शक्ति है। हालाँकि मैं शैतानों के इस जाल में फँस गई हूँ, लेकिन मैं अकेली नहीं हूँ, क्योंकि इन अन्धकारपूर्ण दिनों में तू मेरे साथ है, जो मुझे बार-बार इन हालात में जीने के लिये आस्था और शक्ति देता है। हे परमेश्वर, अगर किसी दिन इस जगह से निकलकर मैं एक स्वतंत्र जीवन जी पाई, तो भी मैं अपना कर्तव्य निभाती रहूँगी। मैं तुझे कोई कष्ट नहीं दूँगी, न ही मैं अपने लिए कोई योजना बनाऊँगी। हे परमेश्वर, आने वाले दिन चाहे जितने भी मुश्किल भरे हों, मैं तुझ पर ही निर्भर रहना चाहूँगी, और सशक्त ढंग से जीना चाहूँगी!”https://reurl.cc/D1R7vE

जब मैं जेल में थी, तो अक्सर उन दिनों को याद करती जो मैंने भाई-बहनों के साथ बिताए थे—वो भी क्या दिन थे! हर कोई ख़ुश था, हँसता था। हालाँकि बहस भी हो जाती थी, लेकिन ये सारी चीज़ें मेरे लिए एक मीठी याद बन गई थी। जब भी काम में अपनी लापरवाही को याद करती, तो मेरे मन में एक अपराध-बोध आ जाता, और मैं अपने आपको ऋणी महसूस करती; जब मुझे यह बात याद आती कि मैं अपने अहंकारी स्वभाव की वजह से किस तरह भाई-बहनों से बहस किया करती थी, तो मेरा दिल दुखी हो जाता, और मुझे बेहद अफ़सोस होता। ऐसे मौके पर मेरी आँखों में आँसू आ जाते, और मैं दिल ही दिल में इस भजन को गाती: “मैंने कई बरस परमेश्वर में विश्वास रखा है लेकिन मैंने कभी अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया, मुझे दिल में बहुत गहरा अफ़सोस है। मैंने परमेश्वर के प्यार का बहुत आनंद लिया है, लेकिन बदले में कभी कुछ नहीं दिया। परमेश्वर ने मुझे अभ्यास करने के बहुत सारे अवसर दिए हैं, लेकिन मैंने उन अवसरों को लापरवाही से ले लिया, और मैंने अपना पूरा दिलो-दिमाग, धन-दौलत, शोहरत, रुतबा और भविष्य की योजना बनाने में लगा दिया। मैं बहुत विद्रोही हूँ, बेशर्म हूँ, बहुत सारे अच्छे वक्त को मैंने बर्बाद कर दिया। …मुझे बहुत पश्चाताप हो रहा है—मैंने ध्यान क्यों नहीं दिया कि परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक है? कहीं मेरे प्रायश्चित में बहुत देर तो नहीं हो गई, मैं जानता नहीं, मुझे बहुत पश्चाताप हो रहा है। पता नहीं परमेश्वर मुझे एक और अवसर देगा या नहीं, मुझे बहुत पश्चाताप हो रहा है” (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में “मैं पछतावे से भरा हूँ”)। इस पीड़ा और खेद के बीच, मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करता: “हे परमेश्वर! सचमुच मुझ पर तेरा बहुत कर्ज़ है। अगर तू मुझे अनुमति देगा, तो मैं तुझे प्रेम करने का प्रयास करूँगी, जेल से छूटने के बाद भी मैं अपना कर्तव्य निभाना चाहती हूँ। मैं फिर से शुरू करके, अपने पिछले ऋण चुकाना चाहती हूँ।” जिन भाई-बहनों के मैं इतनी करीब आ चुकी थी, उन्हें मैं अपने जेल के दिनों में बहुत याद किया करती थी, उन्हें देखने की मेरी बहुत इच्छा थी। लेकिन मैं यहाँ इस शैतानी जेल में बंदी थी, इसलिये मेरी यह इच्छा एक कल्पना-मात्र थी। फिर भी, मैं अपने भाई-बहनों को सपनों में देखा करती थी, मैं देखती थी कि हम लोग मिल-जुलकर परमेश्वर के वचनों को पढ़ रहे हैं, सत्य पर सहभागिता कर रहे हैं, बहुत ख़ुश हैं, आनंद में हैं …

जब 2008 में वेनचुआन में भूकंप आया, तो हम जिस जेल में थे, वह बुरी तरह से हिल गई, उस जगह को छोड़ने वाला मैं आख़िरी व्यक्ति थी। कई दिनों तक भूकंप के झटके लगते रहे, कैदी और सुरक्षागार्ड सभी डर गये और सारा दिन दहशत में रहते। लेकिन मुझे अपने दिल में अत्यधिक शांति और स्थिरता का एहसास हो रहा थाती, क्योंकि मैं जानती थी कि यह परमेश्वर के वचनों की पूर्ति है, यह परमेश्वर का कहर था जो उन लोगों पर टूट रहा था, जो लोग धरती पर परमेश्वर का विरोध कर रहे थे, उन्हें दंडित किया जा रहा था। पिछले सौ साल में यह सबसे भयानक भूकंप था। उस दौरान परमेश्वर के वचन सदा मेरी रक्षा करते थे। मेरा मानना था कि ज़िंदगी और मौत परमेश्वर के हाथों में है, परमेश्वर जो भी करेगा, मैं परमेश्वर के हर आयोजन और व्यवस्था का आज्ञापालन करने के लिये हमेशा तैयार थी। मुझे बस एक ही चीज़ का दुख था कि अगर मैं मर गई, तो मुझे सृजनकर्ता के लिए अपना कर्तव्य निभाने का मौका नहीं मिलेगा, मैं फिर कभी परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान नहीं दे पाऊँगी और फिर कभी अपने भाई-बहनों से नहीं मिल पाऊँगी। लेकिन मेरी चिंता निरर्थक थी। परमेश्वर सदा मेरे साथ था, वो मुझे सबसे बड़ी सुरक्षा दे रहा था, उसने मुझे भयानक भूकंप से बचाकर पूरी तरह से सुरक्षित रखा था!

जनवरी 2011 में, मुझे समय से पहले रिहा कर दिया गया, अंतत: जेल में मेरी गुलामी की ज़िंदगी का अंत हुआ। जेल से रिहा होकर, मैं बेहद ख़ुश थी: “मैं फिर से कलीसिया जा सकूँगी! मैं फिर से अपने भाई-बहनों से मिल सकूँगी!” मैं इतना ज़्यादा ख़ुश थी कि उसे बयाँ नहीं कर सकती। लेकिन मैंने यह नहीं सोचा था कि मेरी बेटी मुझे नहीं पहचानेगी, मेरे दोस्त और रिश्तेदार मुझे शक की नज़र से देखेंगे, मुझसे बचने लगेंगे, वे मुझसे सारे संबंध तोड़ लेंगे। मुझे कोई समझने या स्वीकार करने को तैयार नहीं था। हालाँकि इस वक्त मैं जेल के दुर्व्यवहार या यातना का शिकार नहीं थी, लेकिन फिर भी लोग मुझसे जानबूझकर बच रहे थे, मेरा उपहास कर रहे थे, मुझे नकार रहे थे, और यह सब मेरे लिए बर्दाश्त करना और भी मुश्किल हो रहा था; मैं कमज़ोर हो गया। पुरानी यादें दिमाग में घूमने लगीं: जब मैं जेल गई, तो सिर्फ़ 31 साल की थी, और जब वापस आई तो 39 की हो चुकी थी। मैंने जेल में आठ शीतऋतुएँ और सात ग्रीष्मऋतुएँ काटीं थीं। कितनी ही बार, जब कभी मैं अकेलापन और बेबसी महसूस करती, तो परमेश्वर मेरी मदद के लिए लोगों, घटनाओं और चीज़ों का आयोजन करता था; कितनी ही बार, जब मैं पीड़ा और निराशा में होती, तो परमेश्वर अपने वचनों के ज़रिए मुझे दिलासा देता; कितनी ही बार, जब मैंने मरने की सोची, तो परमेश्वर ने मुझे जीने के लिए शक्ति और साहस दिया। पीड़ा के उन दर्द भरे, अंतहीन सालों में, परमेश्वर ने ही मौत की उस घाटी में मुझे कदम-दर-कदम राह दिखाई और मुझे दृढ़तापूर्वक जीने के काबिल बनाया। और यहाँ मैं छोटी-सी तकलीफ़ का सामना करके परेशान, कमज़ोर हो रही हूँ, और परमेश्वर को दुखी कर रही हूँ—मैं वाकई नीच व्यक्ति हूँ, कमज़ोर, बेकार और एहसानफ़रामोश इंसान हूँ! जब यह ख़्याल आया, तो मैंने अपने आपको बुरी तरह से लताड़ा, मैंने परमेश्वर की उस शपथ को याद किया जो मैंने जेल में ली थी: “अगर मैं किसी दिन इस जगह से निकलकर एक स्वतंत्र जीवन जी पाई, तो भी मैं अपना कर्तव्य निभाती रहूँगी। मैं तुझे कोई कष्ट नहीं दूँगी, न ही मैं अपने लिए कोई योजना बनाऊँगी।” इस शपथ के बारे में सोचकर और उस समय को याद करके, जब मैंने परमेश्वर के नाम पर यह शपथ ली थी, आँसुओं से मेरी आँखें धुँधला गईं, मैं धीरे-से यह भजन गुनगुनाने लगी: “मैं स्वयं परमेश्वर के पीछे जाने और उसका अनुसरण करने के लिए तत्पर हूँ। अब परमेश्वर मुझे त्याग देना चाहता है लेकिन मैं अभी भी उसका अनुसरण करना चाहता हूं। वह मुझे चाहे या ना चाहे, मैं तब भी उससे प्रेम करता रहूंगा, और अंत में मुझे उसे प्राप्त करना होगा। मैं अपना हृदय परमेश्वर को अर्पण करता हूं, और चाहे वह कुछ भी करे, मैं अपने पूरे जीवन उसका अनुसरण करूंगा। चाहे कुछ भी हो, मुझे परमेश्वर से प्रेम करना होगा और उसे प्राप्त करना होगा; मैं तब तक आराम नहीं करूंगा जब तक मैं उसे प्राप्त नहीं कर लेता हूँ” (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में “मैं परमेश्वर को प्रेम करने को दृढ़-संकल्पित हूँ”)।

मैंने कुछ वक्त आध्यात्मिक भक्ति और सामंजस्य बैठाने में गुज़ारा, उसके बाद, परमेश्वर की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन में मैंने नकारात्मकता को जल्द ही पीछे छोड़ दिया और एक बार फिर अपने आपको अपने कर्तव्य पूरा करने में झोंक दिया।

हालाँकि मैंने अपनी युवावस्था के बेहतरीन वर्ष जेल में बिताए थे, लेकिन उन सात सालों और चार महीनों में मैंने परमेश्वर में अपनी आस्था के लिये कष्ट उठाए थे, और इस बात का मुझे कोई अफ़सोस नहीं है। चूँकि मैंने सत्य को थोड़ा समझ लिया था और परमेश्वर के प्रेम का अनुभव कर लिया था, मुझे लगता है कि इस पीड़ा को झेलने का कुछ अर्थ और मूल्य है, यह मेरे लिए परमेश्वर का असाधारण उत्कर्ष है, मेरे प्रति उसकी करुणा है, मेरे लिए परमेश्वर की विशिष्ट कृपा है। भले ही मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों ने मुझे न समझा हो, भले ही मेरी बेटी ने मुझे न पहचाना हो, लेकिन परमेश्वर से मेरे संबंध को कोई तोड़ नहीं सकता; मौत भी मुझे उससे अलग नहीं कर सकती।

“शुद्ध प्रेम बिना दोष के”—यह वो भजन था जो मुझे सबसे ज़्यादा गुनगुनाना पसंद था, और आज मैं व्यवहारिक काम करके अपना शुद्धतम प्रेम परमेश्वर को अर्पित करना चाहती हूँ!

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1. “सभी बुराइयों के इस सरगना” का अर्थ बूढ़े शैतान से है। यह वाक्यांश चरम नापसंदगी व्यक्त करता है।

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There is so much that I wish to say to man, so many things that I must tell him. But man’s abilities of acceptance are too lacking: He is incapable of fully grasping My words according to that which I provide, and only understands one aspect but remains ignorant of the other. Yet I do not put man to death because of his powerlessness, nor am I aggrieved by his weakness. I merely do My work, and speak as I have always done, even though man does not understand My will; when the day comes, people will know Me in the depths of their hearts, and will remember Me in their thoughts. When I depart from this earth will exactly be when I ascend to the throne in man’s heart, which is to say, it will be when all men know Me. So, too, will it be when My sons and people rule over the earth. Those who know Me will assuredly become the pillars of My kingdom, and none but they will be qualified to rule and wield power in My kingdom. All those who know Me are possessed of My being, and able to live out Me among all men. I care not to what extent man knows Me: No one can hinder My work in any way, and man can offer Me no assistance and do nothing for Me. Man can only follow My guidance in My light, and seek My will in this light. Today, people have become qualified, and believe they can strut about in front of Me, and laugh and joke with Me without the slightest inhibition, and address Me as an equal. Still man does not know Me, still he believes that in essence we are about the same, that we are both of flesh and blood, and both dwell in the human world. His reverence for Me is too meager; he reveres Me when he is before Me, but is incapable of serving Me before the Spirit. It is as if, for man, the Spirit does not exist at all. As a result, no man has ever known the Spirit; in My incarnation, people see only a body of flesh and blood, and do not perceive the Spirit of God. Can My will really be accomplished in such a way? People are experts at deceiving Me; they seem to have been specially trained by Satan in order to fool Me. Yet I am untroubled by Satan. I will still use My wisdom to conquer the whole of mankind and to defeat the corrupter of all mankind, in order that My kingdom may be established on earth.
Among man, there are those who have attempted to ascertain the size of the stars, or the magnitude of space. Yet never has their research proved fruitful, and they can but hang their heads in dismay and resign themselves to failure. Looking up among all men and observing the dynamics of man in his failures, I see none who are utterly convinced of Me, none who obey Me and submit to Me. How wild are the ambitions of man! When the entire face of the deep was murky, among man I began to taste the bitterness of the world. My Spirit travels throughout the world and looks upon the hearts of all people, yet so, too, do I conquer mankind in My incarnate flesh. Man does not see Me, for he is blind; man does not know Me, for he has grown numb; man opposes Me, for he is disobedient; man comes to bow down before Me, for he has been conquered by Me; man comes to love Me, for I am inherently worthy of man’s love; man lives out Me and manifests Me, because My power and My wisdom make him after My heart. I have a place in man’s heart, but never have I received man’s love of Me in his spirit. There are indeed things in man’s spirit that he loves above all else, but I am not one of them, and so man’s love is like a soap bubble: When the wind blows it pops and is gone, never to be seen again. I have always been constant and unchanging in My attitude toward man. Could any among man have done the same? In the eyes of man, I am as impalpable and invisible as air, and for this reason the great majority of people seek only in the boundless sky, or upon the rolling sea, or upon the placid lake, or among empty letters and doctrines. There is not a single person who knows the substance of mankind, much less is there one who can say anything of the mystery within Me, and so I do not ask that man achieve the highest of standards that he imagines I require of him.
Amid My words, mountains topple, waters flow in reverse, man becomes submissive, and lakes begin to flow without cease. Though the roiling seas surge angrily toward the sky, amid My words such seas are becalmed like the surface of a lake. With the slightest wave of My hand, fierce gales immediately dissipate and depart from Me, and the human world is immediately returned to tranquility. But when I unleash My wrath, the mountains are immediately torn asunder, the ground immediately begins to convulse, water immediately dries up, and man is immediately beset by disaster. Because of My wrath, I pay no heed to the screams of man, provide no assistance in answer to his cries, for My anger is rising. When I am among the heavens, never have the stars been thrown into panic by My presence. Instead, they put their hearts into their work for Me, and so I bestow more light upon them and make them shine more brilliantly, so that they gain greater glory for Me. The brighter the heavens, the darker the world beneath; so many people have complained that My arrangements are unbefitting, so many have left Me to make their own kingdom, which they employ to betray Me, and reverse the state of darkness. Yet who has achieved this by their resolve? And who has been successful in their resolution? Who can reverse that which has been arranged by My hand? When spring spreads across the land, I secretly and quietly send light to the world, so that, on earth, man has a sudden sense of freshness in the air. Yet at that very moment, I obscure the eyes of man, so that he sees only a fog cloaking the ground, and all people and things are rendered indistinct. People can but sigh to themselves, Why did the light last only for a moment? Why does God give man only fog and haziness? Amid people’s despair, the fog disappears in an instant, but when they spy a glimmer of light, I unleash a torrent of rain upon them, and their eardrums are shattered by the thunderstorm as they sleep. Seized by panic, they have no time to take shelter, and are engulfed by the downpour. In an instant, all things beneath the heavens are washed clean in the midst of My wrathful ire. People no longer complain about the onset of heavy rain, and in them all is born reverence. Because of this sudden onslaught of rain, the great majority of people are drowned by the water that rains down from the sky, becoming corpses in the water. I look upon the entire earth and see that many are awakening, that many are repenting, that many are searching for the source of the waters in little boats, that many are bowing down to Me to ask for My forgiveness, that many have seen the light, that many have seen My face, that many have the courage to live, and that the whole world has been transformed. Following this great torrent of rain, all things have returned to what they were in My mind, and are no longer disobedient. Before long, the whole land is filled with the sound of laughter, everywhere on earth there is an atmosphere of praise, and nowhere is without My glory. My wisdom is everywhere on earth, and throughout the entire universe. Among all things are the fruits of My wisdom, among all people teem the masterworks of My wisdom; everything is like all things in My kingdom, and all people dwell in rest beneath My heavens like the sheep upon My pastures. I move above all men and am watching everywhere. Nothing ever looks old, and no person is as he used to be. I rest upon the throne, I recline across the whole universe, and I am fully satisfied, for all things have recovered their holiness, and I can peacefully reside within Zion once again, and the people on earth can lead serene, contented lives under My guidance. All peoples are managing everything in My hand, all peoples have regained their former intelligence and original appearance; they are no longer covered with dust, but, in My kingdom, are as pure as jade, each with the face like that of the holy one within man’s heart, for My kingdom has been established among man. https://reurl.cc/A1QYxY
Excerpted from The Word Appears in the Flesh

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